hindisamay head
:: हिंदी समय डॉट कॉम ::
गांधी साहित्य (25 मई 2018), मुखपृष्ठ संपादकीय परिवार

दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास
मोहनदास करमचंद गांधी

2. इतिहास

अफ्रीका के भूगोल पर दृष्टिपात करते हुए पहले प्रकरण में हमने जिन भौगोलिक विभागों की संक्षिप्त चर्चा की, वे प्राचीन काल से चले आ रहे हैं ऐसा पाठक न मान लें। अत्यंत प्राचीन काल में दक्षिण अफ्रीका के निवासी कौन लोग रहे होंगे, यह निश्चित रूप से पता नहीं लगाया जा सका है। यूरोपियन लोग दक्षिण अफ्रीका में आकर बसे उस समय वहाँ हबशी रहते थे। ऐसा माना जाता है कि अमेरिका में जिस समय गुलामी के अत्याचार का बोलबाला था, उस समय अमेरिका से भागकर कुछ हबशी दक्षिण अफ्रीका में आकर बस गए थे। वे लोग अलग-अलग जाति के नाम से पहचाने जाते हैं - जैसे जुलू, स्वाजी, बसूटो, बेकवाना आदि। उनकी भाषाएँ भी अलग-अलग हैं। ये हबशी ही दक्षिण अफ्रीका के मूल निवासी माने जाते हैं। परंतु दक्षिण अफ्रीका इतना बड़ा देश है कि आज हबशियों की जितनी आबादी वहाँ है उससे बीस या तीस गुनी आबादी उसमें आसानी से समा सकती है। रेल द्वारा डरबन से केप टाउन जाने के लिए 1800 मील की यात्रा करनी होती है। समुद्री मार्ग से भी दोनों के बीच की यात्रा 1000 मील से कम नहीं है। पहले प्रकरण में बताए गए चार उपनिवेशों का कुल क्षेत्रफल 473000 वर्गमील है।

इस विशाल भूभाग में हबशियों की आबादी 1914 में लगभग 50 लाख और गोरों की आबादी लगभग 13 लाख थी। जुलू जाति के लोग हबशियों में ज्यादा से ज्यादा कद्दावर और सुंदर कहे जा सकते हैं। 'सुंदर' विशेषण का उपयोग मैंने हबशियों के बारे में जान-बूझकर किया है। गोरी चमड़ी और नुकीली नाक को हम सुंदरता का लक्षण मानते हैं। यदि इस अंधविश्वास को हम घड़ी भर एक ओर रख दें, तो हमें ऐसा नहीं लगेगा कि जुलू को गढ़ने में ब्रह्मा ने कोई कसर रहने दी है। स्त्रियाँ और पुरुष दोनों ऊँचे और ऊँचाई के अनुपात में विशाल छाती वाले होते हैं। उनके संपूर्ण शरीर के स्नायु सुव्यवस्थित और बहुत बलवान होते हैं। उनकी पिंडलियाँ और भुजाएँ मांसल और सदा गोलाकार ही दिखाई देती हैं। कोई स्त्री या पुरुष झुककर या कूबड़ निकाल कर शायद ही चलता देखा जाता है। उनके होंठ जरूर बड़े और मोटे होते हैं; परंतु वे सारे शरीर के आकर के अनुपात में होते हैं इसलिए मैं तो नहीं कहूँगा कि वे जरा भी बेडौल लगते हैं। आँखें उनकी गोल और तेजस्वी होती है। नाक चपटी और बड़े मुँह पर शोभा दे इतनी बड़ी होती है और उनके सिर के घुँघराले बाल उनकी सीसम जैसी काली और चमकीली चमड़ी पर बड़े सुशोभित हो उठते हैं। अगर हम किसी जुलू से पूछें कि दक्षिण अफ्रीका में बसने वाली जातियों में सबसे सुंदर वह किसे मानता है, तो वह अपने जाति के लिए ही ऐसा दावा करेगा और उसके इस दावे को मैं जरा भी अनुचित नहीं मानूँगा।

पूरी सामग्री पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

कविताएँ
सर्वेंद्र विक्रम

सर्वेंद्र विक्रम वक्रता और प्रतीक पद्धति से बचकर स्थितियों को विभिन्न संदर्भों से जोड़कर उनका मर्म उजागर करते हैं। कहीं कहीं सूक्तिकथन हैं; जैसे, बाजार व्यवस्था के दावों और प्रलोभनों के संदर्भ में, 'सब कुछ सहज ढंग से व्यवस्थित नहीं है इस परिदृश्य में' या उदारीकरण की फूली-फली कुलीनतावादी संस्कृति के संदर्भ में, 'क्योंकि पूँछ हिलाने वाले विचार प्रचलन में हैं, सबकी पसंद हैं'। ऐसे सभी कथन या तो समानांतर परिदृष्य के निष्कर्ष के रूप में हैं या प्रचलित और स्थिर मान्यताओं पर आघात के रूप में। नए जीवन यथार्थ की पहचान ही यही है कि जो 'व्यवस्था' दिखाई दे रही है, वह सहज नहीं है; जो उदासी और अँधेरा सहज जान पड़ता है वह अपने भीतर परिवर्तन की ऊर्जा छिपाए हुए है। सहजता का लक्षण यह है कि प्रभुत्वशाली विचारों से हटकर कर्ममय जीवन जीने वाले मनुष्य में भरोसा हो जो इन दिनों ज्यादा मुश्किल हो गया है। सर्वेंद्र के पास जीवन में ह्रासमान और संभावनाशील शक्तियों की अपनी समझ है। - अजय तिवारी

आलोचना
सुबोध शुक्ल
ब्रेकडाउन और ब्लैकआउट के बीच कहीं (!)
(राजकमल चौधरी की कविता पर कुछ रफ नोट्स)
सभ्यताओं के अवशेष में अपना जीवाश्म खोजती कविता
(कवि हरीशचंद्र पांडे की कविताओं से एक संवाद)

कहानियाँ
महेंद्र सिंह
पॉलीथीन की थैली
भोर का तारा!
जाननिसारी
कहानी 'क' और कहानी 'ख'
एक्वेरियम

विशेष
कृष्ण मोहन
सकारात्मक निषेध का पैमाना
डॉ. अशोक नाथ त्रिपाठी
‘अर्थ’ का अर्थ

विमर्श
अरुण कुमार त्रिपाठी
नवउदारवादी अर्थव्यवस्था में विषमता की चौड़ी होती खाईं

बाल साहित्य - लू लू की कहानियाँ
दिविक रमेश
वे बच्चे क्यों नहीं हैं
मैं क्यों सोचूँ
सॉरी लू लू
लू लू की बातें
लू लू की सनक
लू लू की माँ
लू लू बड़ा हो गया

संरक्षक
प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र
(कुलपति)

 संपादक
प्रो. आनंद वर्धन शर्मा
फोन - 07152 - 252148
ई-मेल : pvctomgahv@gmail.com

समन्वयक
अमित कुमार विश्वास
फोन - 09970244359
ई-मेल : amitbishwas2004@gmail.com

संपादकीय सहयोगी
मनोज कुमार पांडेय
फोन - 08275409685
ई-मेल : chanduksaath@gmail.com

तकनीकी सहायक
रविंद्र वानखडे
फोन - 09422905727
ई-मेल : rswankhade2006@gmail.com

कार्यालय सहयोगी
उमेश कुमार सिंह
फोन - 09527062898
ई-मेल : umeshvillage@gmail.com

विशेष तकनीकी सहयोग
अंजनी कुमार राय
फोन - 09420681919
ई-मेल : anjani.ray@gmail.com

गिरीश चंद्र पांडेय
फोन - 09422905758
ई-मेल : gcpandey@gmail.com

आवश्यक सूचना

हिंदीसमयडॉटकॉम पूरी तरह से अव्यावसायिक अकादमिक उपक्रम है। हमारा एकमात्र उद्देश्य दुनिया भर में फैले व्यापक हिंदी पाठक समुदाय तक हिंदी की श्रेष्ठ रचनाओं की पहुँच आसानी से संभव बनाना है। इसमें शामिल रचनाओं के संदर्भ में रचनाकार या/और प्रकाशक से अनुमति अवश्य ली जाती है। हम आभारी हैं कि हमें रचनाकारों का भरपूर सहयोग मिला है। वे अपनी रचनाओं को ‘हिंदी समय’ पर उपलब्ध कराने के संदर्भ में सहर्ष अपनी अनुमति हमें देते रहे हैं। किसी कारणवश रचनाकार के मना करने की स्थिति में हम उसकी रचनाओं को ‘हिंदी समय’ के पटल से हटा देते हैं।
ISSN 2394-6687

हमें लिखें

अपनी सम्मति और सुझाव देने तथा नई सामग्री की नियमित सूचना पाने के लिए कृपया इस पते पर मेल करें :
mgahv@hindisamay.in